हाॅकी के जादूगर के नाम से विश्व विख्यात हाॅकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का वास्तविक नाम ध्यान सिंह था। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयाग इलाहा...
हाॅकी के जादूगर के नाम से विश्व विख्यात हाॅकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का वास्तविक नाम ध्यान सिंह था। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयाग इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के बैंस, राजपूत परिवार में हुआ था। ध्यान सिंह के पिता का नाम श्री सोमेश्वर दत सिंह बैंस तथा माता नाम श्रीमती श्यामा देवी था। ध्यान सिंह तीन भाईयों मे मझले भाई थे क्रमशः सूबेदार मूल सिंह, मेजर ध्यान सिंह तथा केप्टन रूप सिंह थे। ध्यान सिंह ने 16 वर्ष की अल्प आयु में सन् 1922 मे सेना में जूनियर कमिशन पद पर सेवा प्रारंभ की। सेना में सेवा के दौरान दिन भर सेना की नौकरी तथा रात में चाँद की रोशनी मे हाॅकी खेल का अभ्यास करते थे। उनके रात्रि मे चाँद की रोशनी में अभ्यास करने के परिश्रम को देखते हुए उन्हें सेना के प्रशिक्षक ने ध्यानचंद की उपाधि दि तथा कहा आज तुम चाँद की रोशनी में अभ्यास कर रहे हो, भविष्य मे तुम भी चाँद की रोशनी की तरह पुरी दुनिया में चमकोगे और ध्यानचंद के नाम से सम्पूर्ण विश्व मे जाने जाओगे और आगे चलकर ऐसा ही हुआ।
1926 में न्यूजीलैंड के दौरे में 50% गोल ध्यानचंद जी की स्टिक से हुए, आज के जनीतिक दौर में उनके खेल के क्षेत्र मे रही अविस्मरणीय उपलब्धियों को भूला दिया गया और हिन्दुस्तान को खेलो के क्षेत्र मे विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को "भारत रत्न" से सम्मानित करने की बात तक नही की . . . !
आजादी से पूर्व 15 अगस्त 1936 को ध्यानचन्द की कप्तानी मे भारतीय हॉकी टीम ने विश्व के सबसे शक्तिशाली तानाशाह हिटलर की मोजूदगी मे ध्यानचन्द के 4 गोल स्कोर से उसी के देश जर्मनी को 8 -1 से परास्त कर लगातार तीसरी बार आेलम्पिक खेलो मे स्वर्ण पदक दिलाकर खेल के क्षेत्र से आजादी की अलख जगा दी थी। रात्रि भोज के समय लांस नायक ध्यानचंद जी की मुलाकात जर्मनी के चांसलर हिटलर से हुई, हिटलर ने जर्मनी के लिए खेलने का आग्रह किया और सेना में उच्च पद देने का आश्वासन, लेकिन स्वदेश प्रेमी ध्यान चंद जी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, वह देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत थे। इससे पहले ध्यानचन्द सन् 1928 मे एमस्टर्डम ओलम्पिक तथा 1932 लाॅसएंजिल्स ओलम्पिक खेलो मे भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीत चुके थे । और तीनों ही ओलंपिक खेलों में हैट्रिक लगाना अपने आप में अविस्मरणीय था. 1936 के बर्लिन ओलंपिक में हाफ टाइम के बाद जूते उतारकर नंगे नंगे पैर खेलें और साथ दिया रूप सिंह ने भारत ने यह मुकाबला आठ के मुकाबले 1 गोल से जीता सन् 1940 तथा 1944 मे विश्व युद्ध के चलते ओलम्पिक खेलो का आयोजन नही हुआ। अन्यथा ध्यानचन्द के नेतृत्व वाली भारतीय हाॅकी टीम ओलम्पिक खेलो मे अनवृत स्वर्ण पदक जीतती।आजादी से पहले भारतीय हाॅकी टीम ब्रिटीश इण्डिया के झण्डे के अधीन ओलम्पिक खेलो मे हिस्सा लेती थी ।
आजादी से पहले क्रमश: 1928 एमस्टर्डम ओलम्पिक 1932 लाॅसएंजिल्स ओलम्पिक 1936 बर्लिन ओलम्पिक मे भारत ने लगातार तीनो ओलम्पिक मे स्वर्ण पदक जीते। प्रारंभ की तीनों ओलंपिक खेल मेजबान देशों की टीमों को फाइनल में हराया, उपरोक्त तीनो ओलम्पिक मे ध्यानचन्द ने अपने करिश्माई खेल से स्वर्ण पदक दिलाने मे विशेष योगदान दिया। ध्यानचन्द को हाॅकी के जादूगर के नाम से जाने जाना लगा सन् 1946 मे दद्दा के नाम से मशहूर ध्यानचंद को किंग कमीशन द्वारा मेजर की उपाधि दि गई। सन् 1948 के ओलम्पिक से पहले भारतीय हाॅकी टीम को ध्यानचन्द द्वारा ही (कोचिंग) प्रशिक्षण दिया गया था। सन् 1956 मे 51 वर्ष की आयु में मेजर ध्यानचंद सेना से सेवानिवृत्त हुए तथा भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। सन् 1979 दिसम्बर 3 को ध्यानचंद का दिल्ली के एम्स हास्पीटल मे देहावसान हुआ । सन् 1980 मे भारत सरकार द्वारा ध्यानचंद की पहली पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति में 3 दिसम्बर 1980 को डाक टिकट जारी किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंहा राव की सरकार द्वारा वर्ष 1995 मे मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया किन्तु खेलो के क्षेत्र मे पहले भारत रत्न के असली हकदार मेजर ध्यानचंदको सम्मानित नहीं करते हुए उनके देश के प्रति समर्पण को नकारा गया जो कतई उचित नहीं है।
आज समस्त खेल प्रेमी यह आवाहन करते हैं कि हाथी के महान जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिया जाए जिससे हमारा हाकी का इतिहास गौरवान्वित हो। माननीय मोदी जी, देश के प्रधानमंत्री होने के नाते आप द्वारा इस विषय को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है आगामी 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द के जन्म दिवस के अवसर पर मेजर ध्यानचंद को "भारत रत्न" से सम्मानित करने सम्बन्धी प्रस्ताव को स्वीकार करावे तथा भारत रत्न से सम्मानित करवाकर सच्ची श्रधांजली अर्पित करावे.
- सुनील कुमार यादव
संयोजक एवं मीडिया प्रभारी
भारतीय क्रीड़ा विकास संगठन
प्राचार्य, भारत माता कॉलेज किशनगंज
