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एथेंस स्पेशल ओलिम्पिक-2011 में देश के लिए मैडल जितने वाली बेटी को आज रोजी-रोटी के लाले

मेरा जन्म फरवरी 1996 में रीवा शहर के धोबिया टंकी के समीप साहू मोहल्ले में हुआ था। दिव्यांग थी तो मेरे पिता पुरुषोत्तम साहू और माता किरण ने म...

मेरा जन्म फरवरी 1996 में रीवा शहर के धोबिया टंकी के समीप साहू मोहल्ले में हुआ था। दिव्यांग थी तो मेरे पिता पुरुषोत्तम साहू और माता किरण ने मेरा मंदबुद्धि स्कूल में दाखिला करा दिया। स्कूल के दिनों में तत्कालीन हेड मास्टर रामसेवक साहू ने मुझे 'उड़न परी' बोलते हुए एथलेटिक्स के लिए आगे बढ़ाया। मैंने स्कूल के दिनों में जिला, संभाग, राज्य और देश के लिए कई बार एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लिया। इसी बीच 14 साल की उम्र में एथेंस स्पेशल ओलिम्पिक-2011 के लिए मेरा चयन हो गया। ग्रीस शहर में 18 दिन तक चले ओलिम्पिक-2011 में मैं 100 मीटर और 1600 मीटर की दौड़ में तीसरे ​स्थान पर रही। इसके बाद मुझे कांस्य पदक से नवाजा गया। पदक मिलते ही पूरा देश खुशी के मारे झूम उठा था। दिव्यांग कोटे से मेडल जीतने पर मेरे दुनिया भर में चर्चे थे। वहीं 400 मीटर की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में मैंने चौथा स्थान हासिल किया था। इसके बाद विशेष प्रमाण पत्र से नवाजा गया। शहर का साहू मोहल्ला समोसा के हलवाइयों का गढ़ है। धोबिया टंकी पर मेरे पिता और दादा तीन दशक तक समोसे का ठेला व टपरा बनाकर व्यापार कर चुके हैं। करीब 7 साल पहले नगर निगम की अतिक्रमण विरोधी मुहिम ने हमारे समोसे के व्यापार को बंद करा दिया। कहा समीप में अस्पताल चौराहा होने के कारण आए दिन जाम लगता है, इसलिए अब यहां ठेला और टपरा नहीं लगेंगे। कुछ माह गुजरने के बाद शिल्पी प्लाजा ए ब्लॉक के पीछे पिता और भाइयों ने एक बार फिर ठेले में समोसे का व्यापार शुरू किया, लेकिन कुछ माह पहले निगम ने वहां से भी हटा दिया।

मां किरण साहू ने दावा किया कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 5 लाख की इनाम राशि, घर और दुकान देने का वादा किया था, लेकिन हमें सिर्फ 5 लाख रुपए ही मिले हैं। आज तक घर और दुकान के बारे में किसी ने सुध नहीं ली। जबकि वर्तमान समय में राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार है, लेकिन निराशा दोनों जगह मिली है। अगर किसी अधिकारी से कहते हैं तो जलील कर दिया जाता है। कहा जाता है कि जो कुछ मिलना था मिल चुका। अब भूल जाओ।

जब दैनिक भास्कर की टीम सीता साहू के घर पर पहुंची तो मोहल्ले के लोगों ने एक किलोमीटर पहले ही सीता के चर्चें शुरू कर दिए। कहा कि एक दशक पहले देश का दुनिया में नाम रोशन करने वाली सीता साहू आज मुफलिसी का जीवन जी रही है। गरीबी के कारण 8 बाई 36 के मकान में पूरा परिवार रहता है। मकान का आधा हिस्सा चाचा का है। आलम है कि एक कमरे में चार लोग अच्छे से बैठ तक नहीं पाते।

मोहल्ले के लोगों ने बताया कि सीता साहू के पिता पुरुषोत्तम साहू का दो साल पहले निधन हो गया। अब घर में मां किरण साहू ही सहारा है। बड़े भाई धमेन्द्र साहू और छोटे भाई जीतू साहू सहित छोटी बहन राधा साहू की शादी हो चुकी है। दिव्यांग होने के कारण सीता की शादी नहीं हो पाई है। समोसा बेचकर घर के 7 सदस्यों की रोजी रोटी चलती थी, लेकिन जिला प्रशासन को मंजूर नहीं था।

-  साभार दैनिक भास्कर 



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